अटल बिहारी वाजपेयी पर निबंध | Essay on Atal Bihari Vajpayee
अटल बिहारी वाजपेयी' का जन्म 25 दिसंबर 1924 ई० को भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित ग्वालियर के शिंदे की छावनी में हुआ था। इनके पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में ही अध्यापन कार्य करते थे। अटलजी की आरंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में हुई।
तत्पश्चात ग्वालियर में ही विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात कानपुर के डी० ए० वी० कॉलेज से राजनीति शास्त्र में प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर की उपाधि अर्जित की। इसके पश्चात कानून की पढ़ाई करने के लिए विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। अटलजी अपने प्रारंभिक जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आ गए थे।
1942 के 'भारत छोड़ो' आन्दोलन में इन्होने भी भाग लिया और 24 दिन तक कारावास में रहे। इन्होने पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट ख्याति प्राप्त की। अटलजी ने अनेक पुस्तकों की रचना की। अटलजी एक कुशल वक्ता हैं। उनके बोलने का ढंग बिलकुल निराला है। पत्रकारिता से अटलजी ने राजनीति में प्रवेश किया। 6 अप्रैल 1980 ई० में उनको भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर आसीन किया गया।
16 मई 1996 को अटलजी ने देश के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। किन्तु इस बार इनको संख्या बल के आगे त्याग-पत्र देना पड़ा। 19 मार्च 1998 को पुनः अटलजी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। 13 अक्टूबर 1999 को अटलजी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
अटलजी मात्र राजनेता ही नहीं अपितु सर्वमान्य व्यक्ति एवं साहित्यकार भी हैं। उनका चिरप्रसन्न एवं मुक्त स्वभाव उनको महान बना देता है। आज अटलजी राजनीति के उस सर्वोच्च स्थान पर पहुँच चुके हैं जहाँ व्यक्ति को किसी भी राजनीतिक पक्ष की जरूरत नहीं पड़ती।
अटलजी भारतीय गीत-संगीत और नृत्य के शौकीन भी हैं । शब्दों को नाप-तौलकर बोलना और सार्थक बोलना वाजपेयीजी के व्यक्तित्व की एक बड़ी खूबी रही है । भारतीय राजनीति में आज वाजपेयीजी का एक अहम स्थान है । पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने तो इनको भारतीय राजनीति का ‘भीष्म पितामह’ कहकर संबोधित किया है ।
वाजपेयीजी को अब तक पद्म विभूषण (1992), लोकमान्य तिलक पुरस्कार (1994), सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार (1994) तथा पण्डित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार (1994) सहित वर्ष 2014 में ‘भारत रत्न’ सम्मान से भी नवाजा जा चुका है ।
वाजपेयीजी भारतीय राजनीति का यह सबसे मजबूत स्तंभ, दार्शनिक और मार्गदर्शक अपनी खराब सेहत के कारण सक्रिय राजनीति से दूर है । दरअसल, उन्होंने दिसम्बर, 2005 में ही राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी ।
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